शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

सामने आया पुलिस का महिला विरोधी चेहरा

पीयूसीएल ने जारी की दो घटनाओं की जांच रिपोर्ट
कमलेश
पीयूसीएल ने एक बार फिर बिहार के दो बलात्कार कांडों की जांच रिपोर्ट जारी की है। दोनों ही मामलों में बलात्कार के बाद पीड़िता की हत्या कर दी गई। एक मामले में तो पीड़िता आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली बच्ची थी जबकि दूसरे मामले में पांच बच्चों की मां। दोनों ही मामलों में पुलिस ने निहायत ही लापरवाही और गैर जिम्मेदारी भरा रवैया अपनाया। दोनों ही मामलों में पुलिस पर अपराधियों के साथ सांठ-गांठ का आरोप लगा। बलात्कार के एक मामले में जहां पीड़िता अति पिछड़ी जाति की थी, पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज नहीं की। बाद में जब सामाजिक कार्यकर्ता-पत्रकार अनिल प्रकाश और पूर्व आईजी रामचंद्र खान आदि ने पुलिस पर दबाव बनाया तब जाकर एफआईआर तो दर्ज की गई लेकिन यहां मामला बलात्कार के बजाय दुर्घटना का बताया गया। जिस टीम ने इन दोनों घटनाओं की जांच रिपोर्ट जारी की है उसमें पीयूसीएल की प्रदेश उपाध्यक्ष प्रो. डेजी नारायण, शाहिद कमाल, पूर्व सचिव और पत्रकार निवेदिता झा, राज्य महासचिव जितेन्द्र और सदस्य राजेश्वर पासवान शामिल थे। 

बलात्कार के बाद बच्ची को मार डाला
पहला मामला मुजफ्फरपुर जिले के कटरा थाने के सीयातपुर पंचायत स्थित कोप्पी गांव का है। 12 जुलाई को गांव के रवीन्द्र सिंह की 14 साल की बेटी खुशबू कुमारी शाम में छह बजे बगीचे में नित्य क्रिया से निवृत्त होने गई थी। यह बगीचा गांव के दक्षिण में है। जब वह एक घंटे तक वापस नहीं लौटी तो घरवालों ने उसकी तलाश शुरू की। काफी तलाश के बाद घरवालों ने गांव के लोगों की मदद से खुशबू की लाश झाड़ियों से बरामद की। उसके ही दुपट्टे से गला दबाकर उसे मार डाला गया था। उसके शरीर के नीचे के कपड़े खून से तर-बतर थे। खुशबू की लाश रात दस बजे घर लाई गई। घर वालों ने गांव के चौकीदार के माध्यम से कटरा थाने की पुलिस को खबर दी लेकिन पुलिस कई घंटे गुजर जाने के बावजूद नहीं पहुंची।
घर के लोगों ने पीयूसीएल की टीम से कहा कि खुशबू के हत्यारों ने पुलिस को रिश्वत दिये थे इसीलिए पुलिस समय पर नहीं आई। घर के लोगों ने खुशबू के साथ बलात्कार और हत्या का आरोप गांव के ही अवधेश सिंह, त्रिलोक सिंह, सुभाष, पंकज सिंह पर लगाया। ये लोग पीड़िता के परिवार के रिश्तेदार थे। लेकिन पीड़िता के चाचा देवेन्द्र सिंह ने पुलिस को जो शिकायत दर्ज कराई उसमें अवधेश सिंह, त्रिलोक सिंह और पंकज सिंह को आरोपित किया गया था। शिकायत में यह भी कहा गया था कि आरोपित पीड़िता के परिवार को बराबर धमकाते रहते हैं। घरवालों का कहना है कि आरोपित और उनके परिजन बराबर उनपर केस उठा लेने की धमकी देते रहते हैं। इस घटना के बाद रवीन्द्र सिंह के घर की खास कर कॉलेज जाने वाली लड़कियां भयभीत रहती हैं और घर की महिलाओं को भी सहमकर ही बाहर निकलना पड़ता है।
चश्मदीद गवाह को भी मिल रही धमकी
इस घटना के एक गवाह सुरेश सहनी बूढ़े आदमी हैं और बगीचे में ही पहले हिस्से में झोपड़ी बनाकर रहते हैं। उन्होंने पीयूसीएल की टीम को बताया कि उन्होंने शाम में सात बजे के आसपास खुशबू कुमारी को बगीचे की तरफ जाते हुए देखा था। उस समय अंधेरा फैल गया था। अवधेश सिंह, त्रिलोक सिंह, पंकज सिंह और सुभाष सिंह उसकी झोपड़ी में नशे की हालत में बैठे थे। उनलोगों ने भी खुशबू को बगीचे की तरफ जाते हुए देखा। कुछ ही मिनटों के बाद पहले अवधेश सिंह और उसके बाद त्रिलोक सिंह उसी तरफ गए जिस तरफ लड़की गई थी। इस दौरान सुभाष सिंह सड़क पर इधर से उधर टहलता रहा मानो वह गार्ड का काम कर रहा था। पंकज सुरेश सहनी के ही साथ बैठा रहा। सुरेश सहनी ने बताया कि अभियुक्तों के परिजन उसे कोर्ट में बयान नहीं देने के लिए धमकी दे रहे हैं।  पीयूसीएल की टीम अभियुक्तों के भी घर पहुंची लेकिन वहां कोई नहीं था और घर में ताला बंद था।
पुलिस ने क्या कहा
कटरा थाना के थानाध्यक्ष मनोज कुमार ने कहा कि उन्हें सुबह में इस घटना के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने पुलिसकर्मियों को आदेश दिया कि वे लाश को बरामद करे और एफअईआर दर्ज करें। उनका कहना था कि यह मामला बलात्कार का नहीं हत्या का था। 13 जुलाई को एफआईआर दर्ज हुई और केवल दो व्यक्तियों अवधेश सिंह और त्रिलोक सिंह को अभियुक्त बनाया गया। इस घटना के मुख्य अभियुक्त अवधेश सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस की जांच रिपोर्ट के अनुसार अभियुक्त ने स्वीकार किया कि उसने खुशबू कुमारी के साथ बलात्कार करने की कोशिश की लेकिन बच्ची ने प्रतिरोध किया और उसके प्रतिरोध के कारण अपराधी अपने मंसूबे में सफल नहीं हो सका। गुस्से में आकर उसने खुशबू का गला उसके ही दुपट्टे से कसकर उसे मार डाला। दूसरा अभियुक्त त्रिलोक सिंह फरार है।
पीयूसीएल की टीम ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि पहली नजर में बलात्कार का मामला परिवारों की लड़ाई का परिणाम लगता है जिसका नतीजा बच्ची की मौत के रूप में निकला। खुशबू के परिजनों ने 14 जुलाई को शिकायत दर्ज कराई लेकिन पुलिस ने एफआईआर 13 जुलाई की तारीख में ही दर्ज कर लिया। ऐसा क्यों? खुशबू के परिजन भयभीत हैं। उनकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। फरार अभियुक्त और उनके परिजन खुशबू के परिजनों को लगतार धमकी दे रहे हैं।

मार डाली गई महिला, पुलिस ने कहा-दुर्घटना
पीयूसीएल की टीम कटरा थाने के ही घनौरा गांव पहुंची जहां डीह टोला के छोटे सहनी की पत्नी मीरा सहनी के साथ गैंग रेप किया गया था। इस गांव में भूमिहार जाति का दबदबा है जबकि बाकी मल्लाह और कुछ दलितों के घर हैं। यह घटना 19 मई की थी। मीरा सहनी पांच बच्चों की मां थी और उनके पति छोटे सहनी कोलकाता में काम करते हैं। वे भूमिहीन थीं और एक कमरे में अपने पांच बच्चों के साथ रहती थीं। पीयूसीएल की टीम को गांव के लोगों ने बताया कि मीरा सहनी को रात में एक अनजान फोन आया। फोन करने वाले ने उनसे कहा कि उनके बड़े बेटे राजेश कुमार को गांव के स्कूल के पास कुछ लोगों ने मार डाला है। स्कूल में एक धार्मिक आयोजन चल रहा था। यह खबर सुनते ही बदहवास मीरा सहनी घर से बाहर निकल गईं। कुछ लोग घर के बाहर खड़े थे। मीरा सहनी को उन्होंने अपनी बाइक पर बैठाया और लेकर चले गए। परिजनों का आरोप है कि उनलोगों ने मीरा के साथ बलात्कार किया। फिर वे लोग उनकी हत्या करने की नीयत से अचेतावस्था में उन्हें लेकर कहीं और जा रहे थे। इस दौरान वे मोटरसाइकिल गिर गई और उनके सिर में गंभीर चोटें आईं। उन्हें अर्ध नग्न अवस्था में वहीं छोड़कर अपराधी भाग गए। गांव के ही एक आदमी मदन राय ने मीरा सहनी के बच्चों से कहा कि उनकी मां सड़क के किनारे एक गड्ढ़े में गिरी हुई हैं। उन्होंने बच्चों को सलाह दी कि वे उन्हें लाने जाएं तो साड़ी लेकर जाएं। गांव वाले घायल मीरा सहनी को पहले कटरा के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर ले गए। वहां से उन्हें श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और फिर वहां से उन्हें पीएमसीएच भेजा गया। यहां इलाज के दौरान 24 मई को उनकी मौत हो गई।
मामला दर्ज करने को तैयार नहीं थी पुलिस
मीरा सहनी के पति छोटू सहनी 20 मई को पटना पहुंचे और 22 मई को उन्होंने कटरा थाने में पहुंचकर एफआईआर दर्ज करानी चाही लेकिन पुलिस ने इसे स्वीकार नहीं किया। 25 मई को जब इस मामले में पूर्व आईजी रामचंद्र खान और अनिल प्रकाश जैसे लोगों ने हस्तक्षेप किया तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया। इस शिकायत में छोटू सहनी ने रीतुराज सिंह उर्फ पच्छु सिंह, अवधेश राय उर्फ मदन राय, विनोद सिंह उर्फ नागेन्द्र सिंह, चंद्रशेखर सिंह, राजकुमार और पप्पू सिंह को अभियुक्त बनाया। पुलिस ने इनमें से एक को भी गिरफ्तार नहीं किया है।
कटरा के थानाध्यक्ष मनोज कुमार ने पीयूसीएल की टीम को बताया कि मीरा सहनी के साथ कोई बलात्कार नहीं हुआ था। वह मोटरसाइकिल से हुई दुर्घटना के कारण घायल हो गई थीं। थानाध्यक्ष ने टीम को बताया कि छोटू सहनी ने 25 मई को एफआईआर दर्ज कराई है जिसमें छह लोगों को अभियुक्त बनाया गया है।
पीयूसीएल की टीम को पता चला कि घटना के पांच दिनों के बाद पोस्टमार्टम और फारेंसिक रिपोर्ट तैयार हुई। इससे साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की आशंका बढ़ गई। स्थानीय पुलिस ने इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया था कि मीरा सहनी की मौत सिर में चोट लगने से हुई है वहीं फॉरेंसिक रिपोर्ट ने बलात्कार की थ्योरी को भी खारिज कर दिया।

बलात्कार के साक्ष्य मौजूद- पीयूसीएल
पीयूसीएल की टीम का मानना है कि इस बात के पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं कि मीरा सहनी के साथ बलात्कार किया गया। पुलिस के पास इसका कोई जवाब नहीं था कि मीरा सहनी अर्ध नग्न अवस्था में कैसे पाई गईं। पुलिस तो एफआईआर भी दबाव के बाद ही दर्ज कर सकी। पुलिस ने इस मामले में आए तथ्यों की छानबीन नहीं की। यहां तक कि उसने उस मोबाइल कॉल की भी छानबीन नहीं की जो मीरा सहनी ने रात में रीसीव किया था। अगड़ी जाति के कई लोगों ने मीरा सहनी के चरित्र पर सवाल उठाये और कहा कि वह अक्सर रात में बाहर जाती थी। पीयूसीएल की टीम ने सवाल उठाया है कि अगर उनलोगों की बात मान भी ली जाए तो क्या ऐसी महिला को जीने और सुरक्षा पाने का अधिकार नहीं है। महिला की सामाजिक निंदा इसलिए भी की जाती है ताकि जांच और न्याय पर असर पड़े। आम तौर पर दलित महिलाओं के साथ ऐसा ही होता है। पुलिस का कहना है कि वह महिला रात में धार्मिक समारोह में शामिल होने गई थी लेकिन उसने इस बात की तस्दीक नहीं की कि वह उस धार्मिक समारोह में देखी गई थी या नहीं। वैसे कई महिला संगठनों के दबाव डालने के बाद इस मामले की दुबारा जांच की जा रही है।

पीयूसीएल के निष्कर्ष

पीयूसीएल की टीम का यह भी मानना है कि ऐसे मामलों में एफआईआर तत्काल दर्ज करने की व्यवस्था होनी चाहिए। एक ऐसा तंत्र विकसित होना चाहिए जिससे इस बात पर निगरानी रखी जा सके कि थानों में लोगों की शिकायत दर्ज हो रही है या नहीं। हर जिले में कम से कम तीन महिला थाना होने चाहिए। महिलाओं और कमजोरों के साथ होने वाले अपराधों को लेकर पुलिस को ज्यादा संवेदनशील बनाने की जरूरत है। महिला पंचायत जनप्रतिनिधियों को ज्यादा से ज्यादा ट्रेनिंग देने की जरूरत है ताकि वे महिला अधिकारों  के लिए प्रभावशाली तरीके से लड़ सकें। अधिकतर गांवों में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार तभी होता है जब वे नित्य क्रिया से निवृत्त होने के लिए घर से बाहर जाती हैं। घरों में शौचालय नहीं होने का मसला उनके जीवन और पहचान से जुड़ा मसला हो गया है। इसे किसी भी हाल में हर घर में होने की गारंटी होनी चाहिए। 

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