गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

गरीबों से छीनी जा रही बिजली

 कमलेश
साभार- गोपाल
रामध्यान महतो कपड़े की एक दुकान पर काम करते हैं. पटना के खाजपुरा मोहल्ले में वे एक किराये के घर में रहते हैं. उन्होंने पैसे बचाकर ऑफ सीजन में एक कूलर ख़रीदा था. अच्छी खासी छुट मिल गयी थी. सोचा था कि कूलर रहेगा तो इस बार की गर्मी में बच्चों को पढने-लिखने में परेशानी नहीं होगी. पिछली गर्मी में बच्चों की हालत देख कर उनका कलेजा मुंह को आ गया था और तभी से उन्होंने पैसे बचाने शुरू कर दिया था. साढ़े चार हजार रुपये का कूलर आया तो घर में जैसे उत्सव का माहौल बन गया था. लेकिन दुर्भाग्य आसानी से पीछा कहाँ छोड़ता है. अब हालत यह है कि रामध्यान जी को कूलर का स्विच छूते हुए डर लगता है. उनकी पत्नी और बच्चे जब भी कूलर को देखते हैं तो राज्य  सरकार को खूब सरापते हैं. उन्हें डर है कि वे कूलर चलाएंगे तो बिजली का बिल इतना आ जायेगा कि पूरे महीने का बजट ही गड़बड़ा जायेगा.

रामध्यानजी कहते हैं कि अगर एक हजार रुपया बिजली का बिल भरेंगे तो खायेंगे क्या.
 दरअसल बिहार में बिजली का बिल इतना आ रहा है कि धीरे-धीरे बिजली आम आदमी की पहुँच से बाहर होती जा रही  है. बिहार के ग्रामीण इलाकों में एक तो बिजली रहती नहीं है और जब रहती है तो उसको जलाना काफी महंगा होता है. लिहाजा अब गरीब-गुरबे ज्यादातर बिजली चुरा कर ही जला रहे हैं.

अभी बिहार में यदि आपके घर में बिजली का बिल एक महीने में तीन सौ यूनिट से ज्यादा आता है तो हो सकता है कि आपको प्रति यूनिट चार रूपये का बिल भरना पड़े. एक तो बिजली बिल की दर बढ़ा दी गयी और ऊपर से प्रति यूनिट  फ्युएल सरचार्ज वसूला जाता है. इस सरचार्ज का कोई फिक्स रेट नहीं है. लोग पिछले एक साल से  फ्युएल सरचार्ज दे रहे हैं लेकिन आजतक उन्हें इसका हिसाब-किताब समझ में नहीं आया है,. कभी 69 पैसा तो कभी 60 पैसा प्रति यूनिट फ्युएल सरचार्ज वसूला जाता है. एक बार तो एक रुपया 18 पैसा फ्युएल सरचार्ज लिया गया था. मतलब यदि आप पटना जैसे शहर में दो कमरों के घर में रहते हैं तो आपका बिजली बिल एक हजार रुपया से कभी काम नहीं आएगा. पहले यह 6 -7  सौ रुपया के आस पास रहता था.

जब बिहार राज्य बिजली बोर्ड ने फ्युएल सरचार्जके नाम पर अनाप-शनाप पैसा लेना शुरू किया तो कुछ विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया. इस पर सरकार के बिजली मंत्री का कहना था कि विपक्षी दलों के लोग पढ़ते लिखते नहीं हैं. इन्हें पता ही नहीं है कि बिजली के बिल में बढ़ोतरी का काम सरकार नहीं करती है बल्कि इसके लिए एक नियामक योग बना हुआ है. जिस मंत्री ने यह तर्क दिया वह बराबर दूसरों के पढने-लिखने की परीक्षा लिया करते हैं. लेकिन बिहार के गरीब यह तो जरूर पूछेंगे कि यदि आपका बिजली बोर्ड ही आपके कहने में नहीं है तो इतना बड़ा राज्य तो भगवान भरोसे ही रहेगा.

 दरअसल बिहार जैसे राज्य में किसी गरीब के घर में बिजली की बत्ती और पंखा चलने का सम्बन्ध सीधे उसके स्वाभिमान से जुड़ा होता है. अगर यह देखना हो तो किसी मुसहर टोले के उस घर में चले जाइये जिसने किसी तरह पंखा खरीदने का सुख पाया है. यह मसला उनके बच्चों की पढाई लिखाई से भी जुड़ा है. दिन भर मेहनत-मजदूरी करने के बाद अगर किसी को पढने की इच्छा होती है तो यही बिजली उसकी मदद करती है.

एक समय था जब गांवों के दलितों के टोले में बिजली जलती दिखाई पड़ती थी तो तार काट लिए जाते थे कि न रहेगा तार और न जलेगी बिजली. काफी मेहनत और संघर्षों के बाद उन्होंने बिजली जलाने का हक़ पाया है और अब इसे बड़े तरीके से छीना जा रहा है. दुखद तो यह है कि इस मसले को लेकर सड़क पर उतरने को कोई भी तैयार नहीं. कम्युनिस्ट पार्टियाँ भी नहीं.

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