पीयूसीएल ने जारी की दो घटनाओं की जांच रिपोर्ट
कमलेश
कमलेश

बलात्कार के बाद बच्ची को मार डाला
पहला मामला मुजफ्फरपुर जिले के कटरा थाने के सीयातपुर पंचायत स्थित कोप्पी गांव का है। 12 जुलाई को गांव के रवीन्द्र सिंह की 14 साल की बेटी खुशबू कुमारी शाम में छह बजे बगीचे में नित्य क्रिया से निवृत्त होने गई थी। यह बगीचा गांव के दक्षिण में है। जब वह एक घंटे तक वापस नहीं लौटी तो घरवालों ने उसकी तलाश शुरू की। काफी तलाश के बाद घरवालों ने गांव के लोगों की मदद से खुशबू की लाश झाड़ियों से बरामद की। उसके ही दुपट्टे से गला दबाकर उसे मार डाला गया था। उसके शरीर के नीचे के कपड़े खून से तर-बतर थे। खुशबू की लाश रात दस बजे घर लाई गई। घर वालों ने गांव के चौकीदार के माध्यम से कटरा थाने की पुलिस को खबर दी लेकिन पुलिस कई घंटे गुजर जाने के बावजूद नहीं पहुंची।

चश्मदीद गवाह को भी मिल रही धमकी
इस घटना के एक गवाह सुरेश सहनी बूढ़े आदमी हैं और बगीचे में ही पहले हिस्से में झोपड़ी बनाकर रहते हैं। उन्होंने पीयूसीएल की टीम को बताया कि उन्होंने शाम में सात बजे के आसपास खुशबू कुमारी को बगीचे की तरफ जाते हुए देखा था। उस समय अंधेरा फैल गया था। अवधेश सिंह, त्रिलोक सिंह, पंकज सिंह और सुभाष सिंह उसकी झोपड़ी में नशे की हालत में बैठे थे। उनलोगों ने भी खुशबू को बगीचे की तरफ जाते हुए देखा। कुछ ही मिनटों के बाद पहले अवधेश सिंह और उसके बाद त्रिलोक सिंह उसी तरफ गए जिस तरफ लड़की गई थी। इस दौरान सुभाष सिंह सड़क पर इधर से उधर टहलता रहा मानो वह गार्ड का काम कर रहा था। पंकज सुरेश सहनी के ही साथ बैठा रहा। सुरेश सहनी ने बताया कि अभियुक्तों के परिजन उसे कोर्ट में बयान नहीं देने के लिए धमकी दे रहे हैं। पीयूसीएल की टीम अभियुक्तों के भी घर पहुंची लेकिन वहां कोई नहीं था और घर में ताला बंद था।
पुलिस ने क्या कहा
कटरा थाना के थानाध्यक्ष मनोज कुमार ने कहा कि उन्हें सुबह में इस घटना के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने पुलिसकर्मियों को आदेश दिया कि वे लाश को बरामद करे और एफअईआर दर्ज करें। उनका कहना था कि यह मामला बलात्कार का नहीं हत्या का था। 13 जुलाई को एफआईआर दर्ज हुई और केवल दो व्यक्तियों अवधेश सिंह और त्रिलोक सिंह को अभियुक्त बनाया गया। इस घटना के मुख्य अभियुक्त अवधेश सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस की जांच रिपोर्ट के अनुसार अभियुक्त ने स्वीकार किया कि उसने खुशबू कुमारी के साथ बलात्कार करने की कोशिश की लेकिन बच्ची ने प्रतिरोध किया और उसके प्रतिरोध के कारण अपराधी अपने मंसूबे में सफल नहीं हो सका। गुस्से में आकर उसने खुशबू का गला उसके ही दुपट्टे से कसकर उसे मार डाला। दूसरा अभियुक्त त्रिलोक सिंह फरार है।
पीयूसीएल की टीम ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि पहली नजर में बलात्कार का मामला परिवारों की लड़ाई का परिणाम लगता है जिसका नतीजा बच्ची की मौत के रूप में निकला। खुशबू के परिजनों ने 14 जुलाई को शिकायत दर्ज कराई लेकिन पुलिस ने एफआईआर 13 जुलाई की तारीख में ही दर्ज कर लिया। ऐसा क्यों? खुशबू के परिजन भयभीत हैं। उनकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। फरार अभियुक्त और उनके परिजन खुशबू के परिजनों को लगतार धमकी दे रहे हैं।
मार डाली गई महिला, पुलिस ने कहा-दुर्घटना

मामला दर्ज करने को तैयार नहीं थी पुलिस
मीरा सहनी के पति छोटू सहनी 20 मई को पटना पहुंचे और 22 मई को उन्होंने कटरा थाने में पहुंचकर एफआईआर दर्ज करानी चाही लेकिन पुलिस ने इसे स्वीकार नहीं किया। 25 मई को जब इस मामले में पूर्व आईजी रामचंद्र खान और अनिल प्रकाश जैसे लोगों ने हस्तक्षेप किया तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया। इस शिकायत में छोटू सहनी ने रीतुराज सिंह उर्फ पच्छु सिंह, अवधेश राय उर्फ मदन राय, विनोद सिंह उर्फ नागेन्द्र सिंह, चंद्रशेखर सिंह, राजकुमार और पप्पू सिंह को अभियुक्त बनाया। पुलिस ने इनमें से एक को भी गिरफ्तार नहीं किया है।
कटरा के थानाध्यक्ष मनोज कुमार ने पीयूसीएल की टीम को बताया कि मीरा सहनी के साथ कोई बलात्कार नहीं हुआ था। वह मोटरसाइकिल से हुई दुर्घटना के कारण घायल हो गई थीं। थानाध्यक्ष ने टीम को बताया कि छोटू सहनी ने 25 मई को एफआईआर दर्ज कराई है जिसमें छह लोगों को अभियुक्त बनाया गया है।
पीयूसीएल की टीम को पता चला कि घटना के पांच दिनों के बाद पोस्टमार्टम और फारेंसिक रिपोर्ट तैयार हुई। इससे साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की आशंका बढ़ गई। स्थानीय पुलिस ने इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया था कि मीरा सहनी की मौत सिर में चोट लगने से हुई है वहीं फॉरेंसिक रिपोर्ट ने बलात्कार की थ्योरी को भी खारिज कर दिया।
बलात्कार के साक्ष्य मौजूद- पीयूसीएल

पीयूसीएल के निष्कर्ष
पीयूसीएल की टीम का यह भी मानना है कि ऐसे मामलों में एफआईआर तत्काल दर्ज करने की व्यवस्था होनी चाहिए। एक ऐसा तंत्र विकसित होना चाहिए जिससे इस बात पर निगरानी रखी जा सके कि थानों में लोगों की शिकायत दर्ज हो रही है या नहीं। हर जिले में कम से कम तीन महिला थाना होने चाहिए। महिलाओं और कमजोरों के साथ होने वाले अपराधों को लेकर पुलिस को ज्यादा संवेदनशील बनाने की जरूरत है। महिला पंचायत जनप्रतिनिधियों को ज्यादा से ज्यादा ट्रेनिंग देने की जरूरत है ताकि वे महिला अधिकारों के लिए प्रभावशाली तरीके से लड़ सकें। अधिकतर गांवों में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार तभी होता है जब वे नित्य क्रिया से निवृत्त होने के लिए घर से बाहर जाती हैं। घरों में शौचालय नहीं होने का मसला उनके जीवन और पहचान से जुड़ा मसला हो गया है। इसे किसी भी हाल में हर घर में होने की गारंटी होनी चाहिए।
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