कमलेश
आम तौर पार माओवादियों के प्रवक्ता के रूप में उनका ढंका चेहरा सामने आता था. चेहरे पर सूती गमछा, फौजी वर्दी और कंधे पर टंगी हुई असाल्ट रायफल. ये थे भारत सरकार के दुश्मन नंबर दो मल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ़ किशनजी. भाकपा माओवादी के पोलित ब्यूरो के सदस्य, सैन्य गतिविधियों के प्रमुख संचालक और छापामार युद्ध के विशेषज्ञ. पिछले ३१ वर्षों से भूमिगत जीवन जीने वाले और समझौता विहीन संघर्ष में डटे हुवे किशनजी का विश्वास था कि भारत की परिस्थितियाँ क्रांति के अनुकूल हैं और इन्हें कोई रोक नहीं सकता है. उनके मारे जाने की खबर पिछले साल भी उड़ी थी लेकिन बाद में यह अफवाह साबित हुई. इस बार भी पिछले तीन दिनों से वे ख़ुफ़िया एजेंसियों को चकमा दे रहे थे. आजाद के मारे जाने के बाद किशनजी की मौत भाकपा माओवादी के लिए दूसरा बड़ा झटका है.
माना जाता है कि भाकपा माओवादी में महासचिव गणपति के बाद किशनजी का महत्वपूर्ण स्थान था. यही कारण था कि पार्टी की नीतियों को लोगों के सामने रखने के लिए उन्हें ही चुना गया था. ५३ वर्ष के किशनजी उस लालगढ़ आन्दोलन के जनक थे जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. अंग्रेजी, हिंदी, बंगला, तेलगु, गोंडी और उड़िया भाषाओ पर एक समान अधिकार रखने वाले किशनजी का पूरा परिवार भाकपा माओवादी से जुड़ा हुआ है.उनकी पत्नी पार्टी की पूरावक्ती कार्यकर्ता हैं तो उनके इंजीनियर भाई पार्टी की ओर से छत्तीसगढ़ की जिम्मेवारी सँभालते हैं. वे अपने परिवार के बारे में तो कभी बात नहीं करते थे लेकिन एक बार संवाददाताओं के पूछने पर उन्होंने कहा था कि उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी थे.
किशनजी का बिहार से सीधा सम्बन्ध तो नहीं था लेकिन बिहार के दो माओवादी संगठनों को एकजुट करने में उनकी प्रमुख भूमिका थी.दिग्गज नक्सलवादी नेता सीतारमैया के साथ १९८० में पीपुल्स वार का उस समय गठन किया था जब देश में नक्सलवादी आन्दोलन बिखराव का शिकार हो चुका था और इसके नेताओं में गहरी निराशा छाई हुई थी.किशनजी उस समय एक संगठक के रूप में सामने आये और सीतारमैया के साथ मिलकर पीपुल्स वार को आंध्र प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उड़ीसा, दंदकारान्य और पश्चिम बंगाल की सीमाओं तक पहुचाया. बाद में पीपुल्स वार ने उन्हें बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल का प्रभारी बना दिया. उस समय बिहार के नक्सलवादी संगठन पार्टी यूनिटी और एमसीसी के बीच खुनी झड़पें आम बात थी. किशनजी के नेतृत्व में पीपुल्स वार ने दोनों संगठनों से अलग-अलग बात की. पहले पार्टी यूनिटी और फिर एमसीसी का पीपुल्स वार में विलय हुआ और इस तरह भाकपा माओवादी नामक संगठन अस्तित्व में आया. वही दौर था जब किशनजी पहली बार बिहार के चुने हुए पत्रकारों से झारखण्ड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित एक गांव में मिले थे. लेकिन तब उनसे मिलने वाले पत्रकारों को पता नहीं था कि वे किशनजी से मिल रहे हैं.
(इस लेख का सम्पादित अंश हिंदुस्तान में प्रकाशित हो चुका है. )