मंगलवार, 31 जुलाई 2012

vimarsh

यह है पुलिस मुठभेड़ का सच

पीयूसीएल ने जारी की डुमरिया मुठभेड़ की जांच रिपोर्ट

कमलेश

बिहार पुलिस की मुठभेड़ों का सच एक बार फिर सामने आया है। निर्दोष और गरीब ग्रामीणों को पकड़ कर मार डालने का आरोप एक बार फिर सही साबित हुआ है। पिछले एक महीने से यह कहा जा रहा था कि गया जिले के डुमरिया थाने के भलुआहा में हुई मुठभेड़ के बाद पुलिस ने दो गरीबों को पकड़ कर मार डाला लेकिन इसे कोई सुन नहीं रहा था। सुन तो अभी भी कोई नहीं रहा है- न मीडिया न सरकार लेकिन पीयूसीएल की जांच रिपोर्ट आने के बाद गरीबों की आवाज को ताकत जरूर मिली है।
यह किस्सा 10 जून का है जब  गया जिले के डुमरिया थाने के भलुआहा में पुलिस और भाकपा माओवादी के दस्ते के बीच जबर्दस्त मुठभेड़ हुई थी। पुलिस बल में सीआरपीएफ, कोबरा बटालियन, एसटीएफ और बिहार पुलिस के जवान थे। लगभग पांच घंटे चली मुठभेड़ में पुलिस के दो जवान मारे गए थे। बाद में पुलिस ने दावा किया कि उसने इस मुठभेड़ में दो नक्सलियों को मार गिराया है। लेकिन मुठभेड़ के अगले दिन ही गांव के लोगों ने कहना शुरू किया कि पुलिस ने दो निर्दोष लोगों को पकड़ कर मार डाला है। उनमें से एक तो जालंधर की एक मिठाई फैक्ट्री में काम करता था और कुछ दिन पहले ही छुट्टी में घर आया था। गांव के लोगों और परिजनों का कहना था कि मुठभेड़ खत्म होने के काफी देर के बाद अवधेश भुइया और फुलचंद भुइया अपने जानवरों को पानी पिलाने निकले थे। पुलिस ने उन्हें पकड़ा, पूछताछ की और फिर गोली मार दी। पुलिस के पास ऐसा कोई सबूत नहीं था जिससे यह साबित हो सके कि ये दोनों ग्रामीण नक्सली गतिविधियों में शामिल थे। पुलिस का दावा था कि मुठभेड़ खत्म होने के बाद जब घटनास्थल की छानबीन चल रही थी कि तो दो नक्सलियों के शव मिले। इस घटना के बाद पुलिस और सीआरपीएफ ने पटना से लेकर गया तक में प्रेस कान्फ्रेंस करके अपनी पीठ ठोंकी थी।
लेकिन इस मामले पर सवाल उठने तब शुरू हुए जब परिजनों ने पुलिस पर हत्या का मुकदमा किया। इसके बाद तो पुलिस ने और भी गजब कर दिया। उसने मुकदमे में गवाह बने लोगों को भी नक्सली बताते हुए उन्हें दूसरे मामले में फंसा दिया। पुलिस ने उनलोगों को फंसाया जो अवधेश और फूलचंद भुइया के परिजनों की मदद के लिए आगे आए थे। इसमें एक राजद नेता और एक जिला पार्षद भी थे। नक्सली बताकर मार डाले गए दोनों गरीब ग्रामीणों की पत्नियां गुहार लगाने पटना पहुंची लेकिन यहां किसी ने भी उनकी बात नहीं सुनी। राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने प्रेस कान्फ्रेंस करके इस मुठभेड़ को फर्जी बताया और इसकी जांच की मांग की लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस प्रेस कान्फ्रेंस की खबर भी अखबारों में बहुत महत्व नहीं पा सकी और ना पुलिस मुख्यालय ने इसपर कोई प्रतिक्रिया दी। परिजनों ने पीयूसीएल को आवेदन दिया और पीयूसीएल ने कमेटी बनाकर मामले की जांच की। जांच कमेटी ने 23 जुलाई को अपनी रिपोर्ट जारी की है। पीयूसीएल ने इस रिपोर्ट में कहा है कि पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में दो गरीब ग्रामीणों को मार डाला। उसने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के आलोक में कार्रवाई की अनुशंसा की लेकिन इस बार भी मीडिया ने इस जांच रिपोर्ट को खास तवज्जो नहीं दी।
पीयूसीएल की पूरी जांच रिपोर्ट यहां प्रस्तुत है। यह रिपोर्ट शब्दश: है केवल कहीं-कहीं संपादन करके वाक्य संरचना ठीक की गई है।

पीयूसीएल की जांच रिपोर्ट

10 जून 2012  को गया जिले के डुमरिया थाना के बलथरवा के पास भलुआहा पहाड़ पर जंगल में नक्सलियों और पुलिस के बीच घमासान मुठभेड़ हुई. इसमें दो पुलिसकर्मी और दो  नक्सलियों के मारे जाने की खबर आयी थी. इसके तुरंत बाद इस घटना में नक्सली बताकर मारे गए अवधेश भुइया की पत्नी फुलझरिया देवी और फूलचंद भुइया की पत्नी कलावती देवी के अलावा जिला पार्षद खालिक रजा खां  ने  पी यू सी एल के पास आवेदन देकर कहा कि यह मुठभेड़ फर्जी थी. पुलिस ने अवधेश भुइया और फूलचंद भुइया की हत्या की है और दर्जनों लोगों को फर्जी मुकदमे में फंसाया है.
इस आवेदन के मद्देनजर पी यू सी एल ने एक चार सदस्यीय दल का गठन किया. इसमें सीनियर एडवोकेट और पी यू सी एल के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र लाल दास, पूर्व प्रदेश महासचिव किशोरी दास, कार्यकारिणी सदस्य व पी यू सी एल की गया इकाई के सचिव ब्रम्हानंद शर्मा और संयुक्त सचिव राजन शाह को सदस्य बनाया गया.
जाँच दल 8 जुलाई को घटनास्थल पर पहुंचा. दल ने गया शहर से 94 कि मी का दुर्गम रास्ता तय किया. रास्ते में दल को कई नदियों, पहाड़ियों और घने जंगलों को पार करना पड़ा. घटनास्थल का मुआयना करने के बाद जाँच दल तेंदुआ टांड पहुंचा. अवधेश भुइया और फूलचंद भुइया इसी गांव के रहने वाले थे जिनकी मौत कथित पुलिस मुठभेड़ में हुई थी. जाँच दल ने अवधेश भुइया और फूलचंद भुइया के परिवार के लोगों और वहां के ग्रामीणों से बातचीत की. दल ने डुमरिया थाना के थानाध्यक्ष से भी बात की. जाँच दल ने 23  जुलाई को इस घटना की जाँच रिपोर्ट जारी की है.

  घटनास्थल की भोगौलिक-आर्थिक स्थिति

   घटनास्थल गया मुख्यालय से 100 कि मी और डुमरिया थाना से 30 कि मी दूर है. यहाँ तक पहुँचने के लिए कई पहाड़ियों, नदियों और टूटी-फूटी सड़कों को पार करना पड़ता है.  घटनास्थल पहाड़ पर स्थित जंगल में है. इसके दक्षिण में भूसिया पहाड़, उत्तर में जंगल तथा पहाड़, पश्चिम में काफी दूर तक घना जंगल और पूरब में तीन कि मी के बाद गांव है. इस गांव में रहने वालों की गुजर-बसर पूरी तरह भगवान भरोसे है. विकास की कोई किरण यहाँ तक नहीं पहुंची है. ऊपर से पुलिसिया और नक्सली कहर के बीच इनका जीवन पिसा रहता है. जीविका के साधन के नाम पर थोड़ी बहुत पहाड़ी जमीन है जिसमें वर्षा होने पर थोड़ा बहुत मडुआ, मकई, रहर, बजरा और सरसों के साथ तिल उपजता है. इनका मुख्य पेशा पशु पालन के साथ-साथ तेंदू पत्ता तोड़ कर बेचना, महुआ चुनना और जंगल से लकड़ी काटना है. गांव के लोग केवल बीबीसी रेड़ियो सुन पाते हैं. बिहार के न्यूज़ के समय रेड़ियो इस तरह घनघनाता है कि कुछ भी सुनना मुश्किल होता है. समाचार पत्र पढने के लिए दुर्गम पहाड़ी और कई पहाड़ी नदियों को लाँघ कर 15  कि मी दूर मैगरा बाजार आना पड़ता है. यही कारण है कि इस  इलाके की आबादी घनी नहीं है और यह नक्सलियों की शरणस्थली बना हुआ है. सामाजिक रूप से इस इलाके में सबसे अधिक आबादी भुइयां, भोक्ता, यादव और मुसलमानों में अन्सारियों की है. अन्य जातियां कम संख्या में हैं.
जाँच दल के सदस्य सुबह आठ बजे गया से निकले और दिन के दो बजे घटनास्थल पहुँच पाए. रात में वर्षा होने के कारण पहाड़ी नदियों के पानी ने गया-इमामगंज मुख्य सड़क के डाईवर्सन को तोड़ दिया था. इससे पूरा रास्ता अवरुद्ध हो गया था. जाँच दल काफी मशक्कत के बाद घटनास्थल तक पहुँच पाया. घटनास्थल पर पहुँचने के लगभग एक कि मी पहले से ही लैंड माईन्स के 70 -80  गड्ढे मिले. वहां पुलिस के दो वाहन भी जले पड़े थे. रास्ते में कई गांवों के स्कूल के भवन भी ढहे हुए मिले. घटनास्थल के तीन कि मी के अन्दर कोई आबादी नहीं है. लिहाजा घटना का आँखों देखा हाल बताने वाला कोई आदमी नहीं मिला. किन्तु आसपास के लोगों ने सुबह 6  बजे से 11 बजे दिन तक भलुआहा पहाड़ी से हजारों गोलियां चलने और बम फटने की आवाज सुनने की बात बताई. जाँच दल के आने की सूचना अगल-बगल के गांवों के लोगों को थी. तेंदुआ टांड पर बलथरवा, छाकरवंधा, करनिया टांड, भैंसादोहन, बरहा, कोकना, मह्जारी और कटकनी आदि गांवों के सैकड़ों लोगों ने जाँच दल के समक्ष अपनी व्यथा सुनाई. उन्होंने इस घटना की पृष्ठभूमि और पुलिस दमन की भी बात बताई. लोगों ने इस घटना से जुड़े डुमरिया थाना कांड संख्या 35 / 12  और कांड संख्या 38 / 12  के अलावा शिकायत वाद संख्या 337 / 2   के कागजात भी जाँच दल को सौंपे.

   अवधेश भुइया की पत्नी फुलझरिया देवी का बयान

फुलझरिया देवी ने बताया कि उनके पति अवधेश भुइया दस वर्षों से अधिक समय से पंजाब के जालंधर में लवली स्वीट में कारीगर का कम करते थे. इस साल एक जून को वे 15  दिनों की छुट्टी लेकर घर आये थे. 10  जून को वे दोपहर बाद लगभग तीन बजे दह पर जानवरों को पानी पिलाने गए थे. जब अवधेश भुइया शाम तक घर नहीं लौटे तो उनके परिजन परेशान हो गए और उन्हें खोजने निकले. लेकिन उनका कोई पता नहीं चला. अगले दिन 11  जून को छाकरवंधा पंचायत के मुखिया दरोगी सिंह को लेकर वे लोग  डुमरिया थाना गए. वहां कलावती देवी ( इनके पति फूलचंद भुइया भी लापता थे ), क्रीत भुइया और फुलझरिया देवी की बहन के साथ वे लोग  इमामगंज विधान सभा क्षेत्र के राजद उम्मीदवार रोशन  भुइया के पास गए. रोशन  भुइया ने भी थाने से बात की लेकिन थाने ने कुछ नहीं बताया. इसी बीच उनलोगों को उडती खबर मिली कि पुलिस ने दो व्यक्तियों को मार डाला है और एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर थाने में रखे हुए है. इसके बाद वे लोग गया मेडिकल कालेज अस्पताल गए जहाँ उनलोगों ने अवधेश भुइया और फूलचंद भुइया की लाश देखी. काफी कहने-सुनने के बावजूद पुलिस ने दोनों की लाश उन्हें नहीं सौपी. पुलिस ने कहा कि इनका फिर से पोस्टमार्टम होगा. इसके बाद ही लाश मिलेगी. 13  जून की शाम में इनलोगों को दोनों व्यक्तियों की लाश मिली. लाश काफी  क्षत-विक्षत थी तथा उससे काफी दुर्गन्ध आ रही थी. लिहाजा उनलोगों ने गया में ही लाशों को दफना दिया.
फुलझरिया देवी ने अपने पति का अन्य कारीगरों के साथ मिठाई बनाते हुए फोटो भी जाँच दल को दिखाया. उन्होंने बताया कि उनके पति जिस ट्रेन से आये थे उसका टिकट कोर्ट में वकील के पास जमा कर दिया गया है. उन्होंने रोते हुए कहा कि अब वे अपने तीन छोटे बच्चों का पालन अकेले कैसे कर पाएंगी. 10  जून की घटना के बारे में उन्होंने बताया कि हमलोग अपने पति के साथ सुबह 6  बजे से दिन के 11 बजे तक गोली-बम की आवाज सुन रहे थे.
फूलचंद भुइया की पत्नी कलावती देवी ने बताया कि उनके पति दूसरे की खेती बटाई पर करते थे. उसी से पूरे परिवार का गुजर-बसर चलता था. उनके आठ बच्चे हैं जिनमें कई छोटे हैं. अब उन्हें कौन देखेगा. उन्होंने भी बताया कि अवधेश भुइया और सामाजित भुइया के साथ उनके पति भी जानवरों को पानी पिलाने गए थे. उनके शाम में नहीं लौटने पर घर के लोग उन्हें खोजने निकले. कलावती देवी ने भी फुलझरिया देवी की बातों का पूरी तरह समर्थन किया. उन्होंने यह भी बताया कि अपने पति की पुलिस द्वारा की गयी हत्या के खिलाफ अपने पुत्र फगुनी भुइया से कोर्ट में मुकदमा भी करवाया है. कलावती देवी और फुलझरिया देवी ने यह भी बताया कि जिला पार्षद मुन्ना खां और रोशन  भुइया ने उनलोगों को लाश दिलवाने तथा श्राद्ध कार्य में काफी मदद की. इसके कारण पुलिस ने उनलोगों को भी कई मुकदमों में फंसा दिया है.
इन दोनों तथा अन्य महिलाओं से जब जाँच दल ने पूछा कि अवधेश, फूलचंद और सामाजित भूइया को पुलिस ने उग्रवादी करार दिया है तो इनलोगों का जवाब था कि क्या हमें देखकर ऐसा लगता है कि हमलोग उग्रवादी हैं. उनका कहना था कि पुलिस अपने बचाव के लिए उनपर झूठा आरोप लगा रही है. इसी तरह का बयान सामाजित भूइया की पत्नी बढनो देवी ने भी दिया.

ग्रामीण क्रीत भूइया का बयान

क्रीत भूइया शिकायत वाद के गवाह भी हैं. उन्होंने बताया कि अवधेश, फूलचंद और सामाजित भूइया जब जानवरों को पानी पिलाकर नहीं लौटे तो हमलोग उन्हें खोजने निकले. दूसरे दिन हमलोग उन्हें खोजने के क्रम में जब छकरबंधा गए तो वहां लोगों ने बताया कि उनलोगों ने पुलिस को दो व्यक्तियों की लाश और जीवित सामाजित भूइया को ले जाते देखा है. तब हमलोग अपने पंचायत के मुखिया के साथ विधायक प्रत्याशी रोशन भूइया के यहाँ डुमरिया गए. फिर उनको लेकर मगध मेडिकल कालेज गया गए. वहां हमलोगों ने अवधेश व फूलचंद भूइया की लाश देखी. 11  व 12  तारीख को पोस्टमार्टम कराने के नाम पर लाश नहीं दी गयी. 13  जून की शाम में लाश हमारे हवाले की गयी. हमलोगों ने गया में ही दोनों का दाह संस्कार कर दिया. क्रीत भूइया ने बताया कि अस्पताल में हमलोगों के साथ मुखियाजी के अतिरिक्त उनका भतीजा राजाराम सिंह, भोकता, दोनों मृतकों की पत्नियाँ, फूलझरी की बहन रीता देवी, रोशन भूइया और जिला पार्षद मुन्ना खां भी थे. पुलिस-नक्सली मुठभेड़ के बारे में उन्होंने बताया कि घर से हमलोग गोली-बम चलने की आवाज सुन रहे थे. उन्होंने बताया कि उनके अलावा जो लोग भी फगुनी भूइया द्वारा पुलिस के खिलाफ किये गए मुकदमे के गवाह हैं उन्हें पुलिस ने मुकदमे में फंसा दिया है. पीड़ित परिवार के सदस्यों के अलावा जाँच दल ने भीड़ में खड़े ग्रामीण रामजतन भूइया, कलम भूइया, जीतन भूइया, वृक्ष भूइया, उमेश भूइया, गिरिजा भूइया, झगरू यादव, शंकर पासवान, महराब, महेंद्र साह, प्रवीण भूइया और जिला पार्षद खालिक रजा खां से पूछताछ की. सभी लोगों ने पीड़ित परिवार के बयान का समर्थन किया और खुद के नक्सली संगठन से जुड़े होने से इंकार किया.
ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव में नक्सली लोग आते है. वे लोग घर-घर जाकर खाना मांगते हैं. गांव के लोग डर से अथवा स्वेच्छा से अपने घर में बना खाना खिला देते थे. नक्सली खाना के लिए किसी के साथ जोर-जबरदस्ती नहीं करते थे. इसी बात को लेकर पुलिस वाले ग्रामीणों के घर में रात में घुस जाते थे और उनके माँ-बहन को भद्दी-भद्दी गालियाँ देते थे. पुलिस वाले  उनके घर में टार्च की रोशनी में एक-एक कोना देखते थे और नक्सलियों के नहीं मिलने पर ग्रामीणों के साथ गाली-गलौज और मारपीट करते थे. वे ग्रामीणों से कहते थे कि नक्सलियों को पकड़वाओ नहीं तो तुम्हारा जीना हराम कर देंगे. ग्रामीणों के अनुसार बेरोजगारी के कारण गांव के युवक काम करने के लिए पंजाब, हरियाणा और दिल्ली चले गए हैं. पुलिस वाले घर में घुसकर युवकों को खोजते थे और उनके नहीं मिलने पर घर की महिलाओं को भद्दी-भद्दी गालियाँ देते थे. पुलिस वाले घर का भी सामान तहस-नहस कर देते थे. लेकिन 10 जून के बाद गांव में कोई पुलिस वाला नहीं आया. ग्रामीणों  ने बताया कि पुलिस के खिलाफ हुए मुकदमे के गवाह बने सभी लोगों को पुलिस ने मुकदमे में फंसा दिया है. दूसरी तरफ पुलिस के चले जाने के बाद नक्सली जंगल से आकर चेतावनी देते हैं कि अगर ग्रामीणों ने पुलिस से सांठ-गांठ कर उनलोगों को पकड़वाया तो वे उनका जीना हराम कर देंगे. इस तरह गांव के लोग पुलिस और नक्सलियों के बीच पीसे जा रहे हैं. उनलोगों ने यह भी बताया कि इस क्षेत्र में कोई जमींदार नहीं है जिसके खिलाफ कोई आन्दोलन चलाने की आवश्यकता है. लिहाजा हमलोग नक्सली संगठन के सदस्य क्यों बने? फिर भी पुलिस हमलोगों को नक्सली कहती है. हमारी गरीबी इसके लिए दोषी है.
10  जून के पुलिस-नक्सली मुठभेड़ के बारे में ग्रामीणों ने बताया कि वे लोग अपने घर से ही गोली और बम चलने की आवाज सुन रहे थे. यह लगभग सुबह के ६ बजे शुरू हुआ और दिन के 11 बजे तक चला. अवधेश, फूलचंद और सामाजित भूइया गोली की आवाज बंद होने के बाद लगभग 3 बजे जानवरों को पानी पिलाने गए थे. उनलोगों का नक्सली संगठन से कोई लेना-देना नहीं है. अवधेश जालंधर से छुट्टी लेकर आया था.
इसी पंचायत के भैंसा दोहन गांव के रहने वाले मो. सगीर असलम ने बताया कि यहाँ के सभी नौजवान बाहर काम करते हैं. गांव में हिन्दू-मुस्लिम के बीच आपसी भाईचारा है. उन्होंने बताया कि वे लोग अपने  बेटे-बेटियों की शादी दूसरे गांव में करने जाते हैं तो लोग इसलिए इंकार कर देते हैं कि उनका घर नक्सल प्रभावित इलाके में है. दूसरी तरफ पुलिस हमें माओवादी बताकर तंग-तबाह करती है. उन्होंने बताया कि 10  जून के पहले रात में पुलिस आकर काफी तंग कर रही थी. इस कांड में भी सभी निर्दोष को अभियुक्त बना दिया गया है. इतना ही नही, कई बूढ़े, विकलांग और स्कूल में पढने वाले बच्चों का नाम भी प्राथमिकी में डाल दिया गया है. उन्होंने बताया कि इंटर के छात्र अरुण कुमार और सूर्यदेव संजय, 65  साल के राजदेव भोक्ता और त्रिलोकी यादव के अलावा दिल्ली में रहने वाले उमेश यादव को प्राथमिकी में अभियुक्त बना दिया गया है. इस मुकदमा में पैरवी करने के कारण रोशन भूइया और जिला पार्षद खालिक रजा खां को झूठे मुकदमे में फंसा दिया गया है.  गांव के लोगों ने यह भी बताया कि यहाँ के मुखिया अनुसूचित जाति के हैं. सरकारी अधिकारी द्वारा उन्हें कानूनी तौर से काम करने से वंचित कर दिया गया है. इससे सरकारी योजना का लाभ गांव के लोगों को नहीं मिल पाता है. लोगों ने अपनी व्यथा बताते हुए यहाँ तक कहा कि सरकार अपने घोषित कार्यक्रम के तहत बसने के लिए 3  डि. जमीन कहीं भी दे दे वे लोग बसने के लिए तैयार हैं. जिला पार्षद खालिक रजा खां ने ग्रामीणों के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि उन्हें तथा रोशन भूइया को भी पुलिस ने कई झूठे मुकदमे में फंसा दिया है.

थानाध्यक्ष का बयान

डुमरिया के थानाध्यक्ष ने बताया कि अवधेश और  फूलचंद भूइया पुलिस द्वारा मारे गए. वे तथा गिरफ्तार सामाजित भूइया नक्सली हैं. जब थानाध्यक्ष से इनलोगों के नक्सली अथवा अपराधिक रिकार्ड के बारे में पुछा गया तो उन्होंने बताया कि अनुसन्धान के क्रम में अभी तक इनलोगों के खिलाफ कोई रिकार्ड नहीं मिला है. ऐसी खबर थी कि पुलिस वालों ने अवधेश और  फूलचंद भूइया को पुलिस की वर्दी पहना कर मारा है लेकिन थानाध्यक्ष ने बताया कि इनलोगों ने न तो कोई इस तरह की वर्दी पहनी थी और न ही इनके पास से कोई हथियार बरामद हुआ है. सिर्फ अवधेश भूइया हाफ जूता तथा हाफ पैंट पहने हुए था. शेष सभी लोग ग्रामीण वेश-भूषा में थे.
मृतकों के पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि अभी मेरे पास उपलब्ध नहीं है. उन्होंने इन्क्वेस्ट रिपोर्ट देख कर बताया कि फूलचंद भूइया को एक गोली गर्दन की तरफ से और दूसरी गोली दाहिने हाथ की केहुनी में लगी थी. अवधेश भूइया के सिर के दाहिने तरफ गोली लगी थी जबकि दोनों की बांह पर छिलने का निशान था. उन्होंने यह भी बताया कि इन दोनों का दुबारा पोस्टमार्टम कराया गया. अवधेश के जालंधर में काम करने से सम्बन्धित कागजात व रेलवे टिकट के बारे में मिली जानकारी के बारे में जब उनसे पुछा गया कि क्या उनको ऐसे कागज मिले हैं या घटना के बाद क्या वे घटनास्थल पर गए हैं और क्या उन्होंने इस मुताल्लिक पूछताछ की है तो उनका जवाब नकारात्मक था. इस प्राथमिकी के अन्य नामजद अभियुक्तों के नक्सली अथवा अपराधिक रिकार्ड के बारे जब उनसे पुछा गया तो पहले तो उन्होंने उनलोगों के सूचीबद्ध होने की बात बताई. किन्तु बाद में उन्होंने केवल लक्ष्मी सिंह भोक्ता, हरिहर सिंह भोक्ता तथा सुशील भूइया को ही नक्सली पृष्ठभूमि वाला बताया. नक्सलियों द्वारा की गयी पुलिस की क्षति  के बारे में उन्होंने बताया एक पुलिसकर्मी सचिन्द्र शर्मा की मौत नक्सली की गोली से हो गयी जबकि धर्मेन्द्र शर्मा की मौत लैंड माईन्स के कारण हो गयी. इसके अलावा नक्सलियों ने दो गाड़ी और पांच मोटरसाइकल जला दी. इसके अलावा ढेर सारे सामानों की मिसिंग है. 


घटना से सम्बन्धित प्राथमिकी: डुमरिया थाना कांड संख्या-35 /12 

8  पृष्ठों की यह प्राथमिकी इमामगंज थाना के अवर निरीक्षक कृष्ण कुमार के लिखित बयान के आधार पर डुमरिया थाना में दर्ज है. इसके अनुसंधानकर्ता डुमरिया थाना के थानाध्यक्ष शिवनाथ प्रसाद रजक हैं. इस प्राथमिकी के अनुसार पुलिस को गुप्त सूचना मिली कि डुमरिया थाना के बलथरवा गांव के पास भलुआहा पहाड़ पर भाकपा माओवादी का हथियारबंद दस्ता काफी संख्या में किसी बड़े विध्वंसकारी एवं हिंसात्मक कारवाई को अंजाम देने के लिए एकत्रित  हुआ  है. इस सूचना के मिलने के बाद  वरीय  पदाधिकारी  के निर्देश  पर गया के अपर  पुलिस  अधीक्षक  अभियान  शम्भू  प्रसाद के नेतृत्व में सीआरपीएफ, कोबरा बटालियन और एसटी एफ के  वरीय पदाधिकारियों के साथ-साथ कई थानों की  पुलिस अपने शस्त्र बल के साथ पहुंची. दो सौ की संख्या में पुलिसकर्मी टीम बनाकर 10 जून की सुबह 6 बजे भलुआहा पहाड़ पर पहुंचे.
इनलोगों के पहुँचते ही पूर्व से लगाये गए विध्वंसकारी लैंड माईन्स के जोरदार धमाके लगातार होने लगे. प्राथमिकी के अनुसार 1 से 1 .5  कि मी तक लैंड माईन्स लगे थे जिनसे लगातार धमाके होते रहे. पुन: माओवादी उग्रवादियों ने गाली-गलौज करते हुए पुलिस बल पर अंधाधुंध जानलेवा फायरिंग की. तमाम पुलिस बल उग्रवादियों के अम्बुश में फंस चुके थे. अत: आत्मरक्षार्थ सशस्त्र बल ने विधिवत रूप से फायर का जवाब फायर से दिया. दोनों तरफ से हो रही फायरिंग और बम ब्लास्ट करवाने, बचने-बचाने  इत्यादि कार्रवाई करने के क्रम में उग्रवादियों द्वारा आपस में जो नाम लिया जा रहा था उससे स्पष्ट हुआ कि उग्रवादियों की टीम में मुख्य रूप से 31 लोग थे जो नेतृत्व कर रहे थे. उन्हें नामजद अभियुक्त बनाया गया है. इन अभियुक्तों में मृत अवधेश भुइया, फूलचंद भुइया और गिरफ्तार सामाजित भूइया का नाम भी है. इसके अतिरिक्त सामाजित भूइया से पूछकर 9  और लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया है जिनमें अधिकांश भूइया हैं. उपरोक्त व्यक्तियों में माओवादी भी थे.
माओवादियों की गोली से सिपाही सचिन्द्र कुमार शर्मा की मृत्यु घटनास्थल पर ही हो गयी. लैंड माईन्स फटने से एएसपी शम्भू  प्रसाद के हाथ की हड्डी टूट गयी तथा कई पुलिसकर्मी घायल हुए. इस मुठभेड़ के दौरान सभी सशस्त्र बल कोबरा, सीआरपीएफ, एसटी एफ और बिहार पुलिस द्वारा एके-47 , 5 .56 एमएम, 9 एमएम, एस एल आर और अन्य अस्त्रों से कुल 1728 राउण्ड गोलियां चलायी गयी. ओपरेशन के बाद जब्त  315 एमएम, 303 एमएम, 7 .63 x 13 एमएम और 7 .62  के प्राप्त खोखे व जिन्दा कारतूस के आधार पर माना गया कि उग्रवादियों द्वारा 451 राउण्ड गोली चलायी गयी.
तलाशी के क्रम में भलुआहा पहाड़ की पश्चिमी चोटी पर जहाँ से उग्रवादियों द्वारा अंधाधुंध फायरिंग की जा रही थी वहां से 20  गज की दूरी पर दो उग्रवादियों का शव बरामद किया गया. झाड़ी में एक उग्रवादी सामाजित भूइया पिता मेघु भूइया केंदुआ टांड तथा पहाड़ी से उतरने के क्रम में अनिल भारती, सा. मतहारी, इमामगंज को पकड़ा गया. प्राथमिकी में पुलिस के कई सामान के मिसिंग का एवं एक सुमो, एक बोलेरो तथा 5 मोटरसाइकल को भी नक्सलियों द्वारा जलाये जाने का जिक्र है. इस घटना के सम्बन्ध में शिकायत वाद संख्या 337 /12  दिनांक 13 .06 .2012  को एस डी जे एम शेरघाटी के न्यायालय में फगुनी भूइया पिता स्व.फूलचंद भुइया, केंदुआ टांड, थाना  डुमरिया द्वारा किया गया.
इस वाद में फगुनी भूइयाने कहा है कि  दिनांक 10 .06 .2012  को मेरे पिता फूलचंद भुइया एवं भाई अवधेश भुइया पुलिस और नक्सलवादियों के बीच चल रही गोलीबारी के चार घंटा के बाद यानि दोपहर के बाद तीन बजे मवेशी को पानी पिलाने के लिए जब निकले तो दोनों को पुलिसवालों ने पकड़ लिया और पूछताछ करने लगे. वे कहने लगे कि तुमलोग नक्सलाइट हो. पिता एवं भाई ने कहा कि हमलोग पार्टी के आदमी नहीं हैं. इसी बीच पूछताछ करते-करते पुलिसवालों ने मेरे पिता और भाई को गोली मार दी. उनलोगों के साथ मैं भी था. मैं भाग कर आया और घटना की सूचना दी. पुलिसवाले लाश लेकर गया सदर अस्पताल चले गए. वहीँ पोस्टमार्टम हुआ तथा हमलोगों को तीन दिन बाद लाश मिली. वेलोग लाश देने में टाल-मटोल कर रहे थे. मेरे पिताजी घर पर खेती-बाड़ी  करते थे तथा भाई अवधेश भुइया जालंधर में मिठाई फैक्ट्री में काम करता था. वह 1 .06 .2012   को गांव आया था. 
इस मुकदमा में नक्सल एसपी शम्भू प्रसाद, सीआरपीएफ के सेकेण्ड कमान्डेंट छोटेलाल, शेरघाटी के डीएसपी महेंद्र कुमार बसंत्री और अन्य पुलिसकर्मियों को मुदालाह बनाया गया. इस घटना के गवाह अवधेश भुइया की पत्नी फुलझरी देवी, जगेश्वर भुइया, क्रीत भुइया, खेलावन भुइया और जगदीश भुइया हैं.
घटना के 7  दिन के बाद दिनांक 17 .06 .2012  को डुमरिया थाना में पुलिस की ओर से माओवादियों द्वारा की मैगरा बाजार की बंदी को लेकर  मामला दर्ज किया गया. इसमें शिकायत वाद संख्या 337 /12 के गवाह जगेश्वर भुइया, क्रीत भुइया, खेलावन भुइया को अन्य लोगों के साथ अभियुक्त बनाया गया है.
घटनास्थल का निरीक्षण, इर्द-गिर्द के गांवों की सामाजिक, आर्थिक और भोगौलिक स्थिति, ग्रामीणों, मृतक के परिवार के सदस्यों के बयान, विभिन्न प्राथमिकी व शिकायत वाद के अध्ययन तथा पुलिस पदाधिकारियों से हुई बातचीत के बाद जाँच दल निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुँचता है.:

निष्कर्ष

1 . पुलिस और नक्सलियों के बीच जबरदस्त मुठभेड़ हुई. लगभग एक कि मी तक लैंड माईन्स लगाये गए थे. इसके विस्फोट से लगभग 55  जगहों पर छोटे-बड़े गड्ढे दिखाई पड़े. साथ ही एक कि मी तक लैंड माईन्स के निशान पाए गए. घटनास्थल पर दो पुलिस गाड़ी भी बुरी तरह जली हुई पाई गयी. दो पुलिसकर्मी नक्सली कार्रवाई में मारे गए. कानूनी और मानवीय दृष्टिकोण से नक्सलियों की इस कार्रवाई को कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता.
2 . जहाँ तक  अवधेश भुइया और फूलचंद भुइया की मृत्यु का सवाल है, यह कहीं से भी मुठभेड़ का मामला प्रतीत नहीं होता है. दो पुलिसकर्मियों की हत्या के प्रतिशोध में इन दोनों की हत्या पुलिस द्वारा की गयी कार्रवाई है. जहाँ तक नामजद अभियुक्तों के नाम का प्रश्न है इसमें मृतक सहित 40  लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया है. अधिकांश अभियुक्तों की नामजदगी का आधार प्राथमिकी में नक्सली आपरेशन के दौरान एक-दूसरे का नाम लेकर पुकारा जाना है जबकि कुछ लोगों को गिरफ्तार सामाजिक भुइया से हुई पूछताछ के बाद अभियुक्त बनाया गया है.
यह व्यावहारिक नहीं लगता है. जहाँ पर दोनों तरफ से हजारों राउण्ड गोलियां चल रही थी, लैंड माईन्स फटने से भरी आवाज हो रही थी और उस आवाज में प्राथमिकी करने वाले सभी अभियुक्तों का नाम याद कर रहे थे, यह संभव नहीं प्रतीत होता है.
3 . प्राथमिकी के अनुसार अनुसंधानकर्ता डुमरिया के थानाध्यक्ष ने इमामगंज के अवर निरीक्षक द्वारा अग्रसारित फर्द बयान पर इसे दर्ज किया है. वर्तमान अनुसंधानकर्ता ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि अवधेश भुइया और फूलचंद भुइया की मृत्यु पुलिस की गोली से हुई है और उनके पास से किसी भी प्रकार का हथियार या कोई संदिग्ध वस्तु बरामद नहीं हुई है. इससे उनकी नक्सली गतिविधि में संलिप्तता कहीं से भी प्रमाणित नहीं होती है.
प्राथमिकी के अनुसार घटनास्थल से 20  गज की दूरी पर लाश मिली जबकि भौगोलिक स्थिति स्पष्ट करती है कि घटनास्थल से 20  गज की दूरी पर बिल्कुल सपाट एवं खुला पठारी क्षेत्र है जहाँ किसी भी नक्सली का खुले में होने का कोई तार्किक आधार नही बनता है.
4 . मृतक की लाश लगभग 4 बजे शाम में बरामद की गयी. घटना सुबह 6  बजे से दिन के 11  बजे के बीच समाप्त हो गयी थी. विस्फोटक से भरे सघन जंगल में मुठभेड़ के पांच घंटे बाद तक कोई छानबीन चली होगी, यह अपने-आप में विरोधाभासी है. वह भी तब जबकि पुलिस ने 1728  चक्र गोलियां चलाई. फिर भी हताहतों की संख्या नगण्य थी मात्र इन दोनों मृतकों के अलावा. नक्सलियों की अनुमानित संख्या मात्र 450  थी जबकि पुलिस बल अपने लाव-लश्कर के साथ था. भारी संख्या में सीआरपीएफ, कोबरा, एसटी एफ और बिहार पुलिस लामबंदी कर रही थी. डुमरिया के थानाध्यक्ष ने अपने बयान में यह भी बताया कि 60 मोटरसाइकल सवारों के साथ पुलिस बल एंटी लैंड माईन्स व्हीकल सहित सभी सुविधाओं से लैस था. ऐसे में किसी भी नक्सली की लाश या जख्मी को न पाकर मात्र दो निर्दोष ग्रामीणों की हत्या एवं गिरफ़्तारी पुर्णतः एक सोची समझी रणनीति के तहत की गयी प्रमाणित होता है. वह भी तब जबकि मृतक एवं घायल व्यक्ति का कोई भी अपराधिक रिकार्ड पुलिस के पास नहीं है. थानाध्यक्ष किसी अपराध में उनकी संलिप्तता का प्रमाण उपलब्ध नहीं करा पाए. यह हत्या पंचतंत्र के उस आख्यान के आधार पर की गयी है जिसमें कहा गया है कि शिकार से लौटा सिंह राह में पाए गए हिरन को नहीं छोड़ता है. यह पुर्णतः पुलिसिया अभियान की दोषपूर्ण परिणति है.
प्राथमिकी के अनुसार अवधेश भुइया और फूलचंद भुइया की लाश तलाशी के क्रम में उग्रवादियों द्वारा जहाँ से फायरिंग की जा रही थी वहां से 20  गज की दूरी पर पुलिस को मिली तथा उसी के आसपास से सामाजित भुइया  को पकड़ा गया. संयोग से ये तीनों पास के तेंदुआ डीह के रहने वाले थे. यह संयोग है या पुलिस की मनगढंत कहानी!
6 . जहाँ तक उस इलाके के ग्रामीणों द्वारा नक्सलियों को खाना खिलाने और उनसे संपर्क रखने का प्रश्न है, यह भौगोलिक कारणों से उनकी मजबूरी है न कि उनकी इच्छा.
7 . अनुसंधानकर्ता द्वारा अवधेश भुइया के व्हेयर एबाउट की जाँच किये बिना, ग्रामीणों तथा आसपास के लोगों का बयान दर्ज किये बिना अनुसंधान पूरा करने की बात न्यायोचित नहीं है.
8 . प्राथमिकियों को देखने से स्पष्ट लगता है कि पुलिस द्वारा की गयी प्राथमिकी में निर्दोष ग्रामीणों को और मृतकों के परिवार को मदद करने के कारण जिला पार्षद खालिक रजा खां, रोशन भुइया और पुलिस के खिलाफ दर्ज  शिकायत वाद के गवाहों को झूठे मुकदमों में फंसाया गया है जो प्रतिशोध की कार्रवाई है और पुलिस ने इसे जान-बूझ कर गढ़ा है.
अनुशंसा
1 . परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर यह मामला पूर्णतः फर्जी मुठभेड़ एवं इरादतन हत्या का बनता है. इस परिस्थति में मृतकों के परिजन नियमतः मान्य कानून तथा सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशानुसार मुआवजा पाने के अधिकारी हैं. इसे अविलम्ब दिया जाना चाहिए.
2 . सरकारी उदासीनता, दूर-दूर तक विकास का लाभ इस क्षेत्र के लोगों को न मिलने, क्षेत्रीय विधायक का कभी इलाके में नहीं पहुँचने और भौगोलिक जटिलता के मद्देनजर सरकार के विकास कार्यक्रम को वहां की जमीन पर उतारने की भरपूर कोशिश की जनि चाहिए.
3 . शिक्षा, स्वास्थ्य, जन वितरण प्रणाली एवं स्थानीय निकायों की निष्क्रियता और संसाधनों के अभाव को प्राथमिकता के आधार पर लेना चाहिए.
                                                                                                                        
 
 

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